हमारा सविधान पर विशेष सेमिनार, वक्ताओं ने भारतीय संविधान के विभिन्न पहलुओं पर अपने-अपने विचार किए प्रस्तुत
हमारा सविधान पर विशेष सेमिनार, वक्ताओं ने भारतीय संविधान के विभिन्न पहलुओं पर अपने-अपने विचार किए प्रस्तुत

धमतरी। भारतीय संविधान पर आधारित एक शैक्षिक संवाद मंच छत्तीसगढ़ के एक विशेष कार्यक्रम में विभिन्न विशेषज्ञों ने भारतीय संविधान की विशेषताओं और महत्व पर अपने विचार साझा किए। इस आयोजन में विशेषज्ञ वक्ताओं ने संविधान की विशेषताओं, नागरिक अधिकारों, कर्तव्यों और सामाजिक न्याय जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा की। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए सुश्री के. शारदा (दुर्ग) ने भारतीय संविधान का परिचय दिया और इसकी मूल अवधारणा और व्यापकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने प्रभावशाली उद्बोधन में कहा कि भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत और विविधता को समेटने वाला दस्तावेज़ है, जो हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा करता है और हमें स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है।
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महेन्द्र कुमार चन्द्रा (सक्ती) ने संविधान के निर्माण की ऐतिहासिक यात्रा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि संविधान की रचना एक लंबी और विचारशील प्रक्रिया थी, जिसमें डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संविधान भारत की एकता और अखंडता का आधार है।
रिंकल बग्गा (महासमुंद) ने नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मूल अधिकार हमें स्वतंत्रता, समानता और न्याय प्रदान करते हैं, जबकि मूल कर्तव्य एक जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा देते हैं।
संतोष कुमार पटेल (रायगढ़) ने जाति, लिंग और आर्थिक समानता पर संविधान के प्रावधानों की चर्चा की। उनका मानना था कि संविधान समाज में समानता स्थापित करने और सामाजिक भेदभाव को मिटाने का आधार है, जो हमारे देश में भेदभाव दूर करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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चंचला चन्द्रा (सक्ती) ने संघीय ढांचे और राज्य-केंद्र संबंधों पर बात की। उन्होंने कहा कि संविधान ने राज्य और केंद्र के बीच संतुलन स्थापित कर संघीय ढांचे को मजबूत किया है और इससे मजबूत लोकतंत्र की नींव रखी है।
वसुंधरा गोजे (सूरजपुर) ने महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधानों को रेखांकित करते हुए कहा कि भारतीय संविधान महिलाओं को समान अधिकार और सुरक्षा प्रदान करता है, जो उनके सशक्तिकरण की नींव है।
प्रीति शांडिल्य (धमतरी) ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सामाजिक समरसता पर चर्चा की। उनका कहना था कि संविधान ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को सुनिश्चित किया है।
शिवकुमार बंजारे और लक्ष्मण बांधेकर (कबीरधाम) ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) और उसकी संवैधानिक जड़ों पर विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का मौलिक अधिकार है, जो समाज के उत्थान का मार्ग है।
समीक्षा गायकवाड़ (गरियाबंद) ने धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान की आत्मा है, जो सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार का संदेश देती है।
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ज्योति बनाफर (बेमेतरा) ने संविधान में संशोधन प्रक्रिया और उसके प्रभावों पर बात की। उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन ने इसे समय के साथ प्रासंगिक बनाए रखा है।
पुष्पेंद्र कुमार कश्यप (सक्ती) ने ग्राम पंचायतों और स्थानीय शासन की भूमिका पर प्रकाश डाला। उनका कहना था कि संविधान ने पंचायती राज के माध्यम से जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत किया है।
अमरदीप भोगल (बिलासपुर) ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान को एक ऐसा आधार प्रदान किया, जो हर वर्ग, जाति और समुदाय के लिए न्यायसंगत है।
कार्यक्रम के अंत में संविधान की उद्देशिका का पाठ किया गया और इसे हर भारतीय के लिए प्रेरणा स्रोत बताया गया। कार्यक्रम में उपस्थित सभी वक्ताओं का आभार वरिष्ठ शिक्षक धर्मानंद गोजे द्वारा व्यक्त किया गया। उन्होंने अपने समापन उद्बोधन में संविधान के विभिन्न मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला और मंच पर उपस्थित सभी वक्ताओं की सराहना की। साथ ही उन्होंने अपने कार्यों को निरंतर प्रसारित करते रहने की आशा के साथ सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया।