Padam shree award : पंडी राम मंडावी को मिलेगा पद्मश्री, केंद्र सरकार ने पद्म सम्मान का किया ऐलान
Padam shree award : पंडी राम मंडावी को मिलेगा पद्मश्री, केंद्र सरकार ने पद्म सम्मान का किया ऐलान

Padam shree award : रायपुर : छत्तीसगढ़ के पंडी राम मंडावी को पद्मश्री अवॉर्ड दिया जाएगा। ये अवॉर्ड कला के क्षेत्र में दिया जायेगा। पद्म पुरस्कार 2025 प्राप्तकर्ताओं केंद्र सरकार ने की सूची जारी की है। नारायणपुर के पंडी राम मंडावी को पद्मश्री मिलेगा। गोंड मुरिया जनजाति के कलाकार पंडी राम मंडावी, पारंपरिक वाद्ययंत्र बनाते है। पंडी राम मंडावी काष्ठ कला के माध्यम से अबूझमाड़ के आदिवासियों की जीवन शैली, संस्कृति और परंपरा को देश-विदेश में विशिष्ट पहचान दिलाई है। उन्होंने पिता से विरासत में मिली कला को न केवल संरक्षित किया, बल्कि नए आयाम जोड़कर इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
Padam shree award : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार 25 जनवरी को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की। छत्तीसगढ़ की पंडीराम मंडावी और राजस्थान की बतूल बेगम सहित 139 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से नवाजा जाएगा। पद्म पुरस्कार के लिए मध्य प्रदेश की 3 विभूतियों शैली होल्कर, जगदीश जोशीला और भेरू सिंह चौहान को चुना गया है।
Padam shree award : मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने नारायणपुर जिले के जनजातीय कलाकार श्री पंडी राम मंडावी का नाम पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित होने पर बधाई और शुभकामनाएं दी है। यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी की शिल्पकला के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाएगा।
Padam shree award : श्री पंडी राम मंडावी, जो 68 वर्ष के हैं, गोंड मुरिया जनजाति से संबंधित हैं। वे पिछले पांच दशकों से बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को न केवल संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि उसे नई पहचान भी दिला रहे हैं। उनकी विशेष पहचान बांस की बस्तर बांसुरी, जिसे ‘सुलुर’ कहा जाता है, के निर्माण में है। इसके अलावा, उन्होंने लकड़ी के पैनलों पर उभरे हुए चित्र, मूर्तियां और अन्य शिल्पकृतियों के माध्यम से अपनी कला को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है।
Padam shree award : श्री पंडी राम मंडावी ने मात्र 12 वर्ष की आयु में अपने पूर्वजों से यह कला सीखी और अपने समर्पण व कौशल के दम पर छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। एक सांस्कृतिक दूत के रूप में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन 8 से अधिक देशों में किया है। साथ ही, अपने कार्यशाला के जरिए एक हजार से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षण देकर इस परंपरा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का कार्य किया है।