Bollywood News : संवेदनशीलता या सेंसरशिप – क्या भारत तैयार है अपना इतिहास देखने के लिए ?
Bollywood News : Sensitivity or censorship - is India ready to look at its history?

कल्पना पांडे/ मुंबई। Bollywood News : ‘द स्टोरीटेलर’ जैसे गुणवत्तापूर्ण, संवेदनशील और अर्थपूर्ण फिल्म बनाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अनंत महादेवन निर्देशित ‘फुले’ फिल्म प्रदर्शन से पहले ही जबरदस्त विवादों में फँस गई है। ‘फुले’ मूलतः 11 अप्रैल 2025 को प्रदर्शित होने वाली थी, लेकिन महाराष्ट्र की कुछ ब्राह्मण संघटनों द्वारा जातीय भेदभाव को बढ़ावा देने के आरोपों के कारण इसे 25 अप्रैल 2025 तक स्थगित कर दिया गया है।
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Bollywood News शिक्षा के माध्यम से भारत में लड़कियों के लिए पहली स्कूल की स्थापना और तथाकथित पिछड़ी जातियों के उत्थान का काम फुले दंपत्ति के सामाजिक न्याय के सिद्धांत का केंद्र है। फिल्म में प्रतीक गांधी ने ज्योतिराव फुले की भूमिका निभाई है और पत्रलेखा ने सावित्रीबाई फुले की भूमिका। यह फिल्म 19वीं सदी के भारत में शिक्षा और सामाजिक समानता के लिए उनके अग्रणी प्रयासों की समीक्षा करती है, जिसमें 1848 में लड़कियों के लिए देश की पहली स्कूल की स्थापना शामिल है। अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित इस फिल्म का उद्देश्य जाति और लिंग भेदभाव के खिलाफ उनके अथक संघर्ष को उजागर करना है। ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित यह फिल्म उनके इस संघर्ष को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करती है।
Bollywood News ब्राह्मण संगठनों की आपत्तियों के जवाब में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) ने फिल्म में कुछ बदलाव सुझाए हैं। सीबीएफसी ने ‘मांग’, ‘महार’, ‘पेशवाई’ जैसे जातीय संदर्भ वाले शब्दों को हटाने या परिवर्तित करने का सुझाव दिया है। इसी प्रकार, ‘3000 वर्ष की गुलामी’ संवाद को ‘अनेक वर्षों की गुलामी’ में बदलने का प्रस्ताव रखा गया है। वास्तव में, इससे फुले की चाल में जातीय अत्याचारों की सख्त ऐतिहासिक सच्चाई को नरम किया जा रहा है। यह काटछाँट या बदलाव फुले की वैचारिक विरासत की प्रामाणिकता और वंचित समुदायों के ऐतिहासिक संघर्ष पर अन्याय करती है। विभिन्न सामाजिक संगठनों ने इस निर्णय की आलोचना की है और सीबीएफसी पर पक्षपात का आरोप लगाया है।
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Bollywood News पहला सवाल यह है कि क्या हमारे देश में फिल्मों के अनुमोदन के मानदंड अलग-अलग हैं? विवादित बयानों और तथ्यों वाली ‘द केरला स्टोरी’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्मों को सेंसर बोर्ड ने आसानी से प्रमाणित कर दिया, जबकि ऐसी अन्य फिल्मों को इस तरह की छंटनी का सामना नहीं करना पड़ा। परंतु सामाजिक सुधार और ब्राह्मणवादी जातिव्यवस्था विरोधी संघर्ष को चित्रित करने वाली ‘फुले’ पर कई बदलावों का सुझाव जानबूझकर दिया जा रहा है। महात्मा फुले का जन्म 11 अप्रैल को हुआ था और उनकी जयंती के अवसर पर यह फिल्म रिलीज़ करने का व्यावसायिक लाभ भी होते। फिल्म के समय पर रिलीज़ न होने से इसकी सफलता पर प्रभाव पड़ेगा, इसलिए ये बदलाव सुझाए गए और प्रमाणन में देरी हुई। यह असंगति दर्शाती है कि सीबीएफसी सभी फिल्मों पर समान नियम लागू नहीं करता। जिन फिल्मों की कथा किसी विशिष्ट दृष्टिकोण का समर्थन करती है, उन्हें सुविधा होती है, जबकि चुनौतीपूर्ण विषयों वाली फिल्मों को रोका जाता है। यह चयनात्मकता सीबीएफसी की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है और कलात्मक स्वतंत्रता व ऐतिहासिक सत्य पर बंधन लगाती है।
Bollywood News दूसरी बात यह है कि भारत में जाति एक अति संवेदनशील मुद्दा है। जाति आधारित भेदभाव आज भी मौजूद है। ‘फुले’ जैसी फिल्में जो इन प्रश्नों का सीधा सामना करती हैं। सेंसर बोर्ड में शामिल लोगों के नाम और पृष्ठभूमि की जांच से स्पष्ट होता है कि सीबीएफसी की यह कार्रवाई राजनीतिक दबाव या सामाजिक स्थिरता के नाम पर हो रही है। ‘फुले’ जैसी फिल्म पर सख्त नियम लगाना यह दिखाता है कि सीबीएफसी सामाजिक सुधारों पर बोलने वाली फिल्मों को नियंत्रित करना चाहता है, जबकि विभाजनकारी कथानकों को छूट देता है।
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Bollywood News तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘फुले’ को समय पर रिलीज़ न करने में ब्राह्मण संगठनों की शिकायतों का बड़ा हाथ है। इन संगठनों का मानना है कि ज्योतिराव और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित इस फिल्म में ब्राह्मण समुदाय का प्रतिकूल चित्रण किया गया है, जिससे ब्राह्मणों को खलनायक के रूप में दिखाया गया है या उन पर अन्यायपूर्ण आरोप लगाए गए हैं। इन शिकायतों के कारण सीबीएफसी ने फिल्म के प्रदर्शन पर प्रश्नचिन्ह लगाया, कुछ दृश्यों और संवादों पर आपत्ति जताई और बदलाव सुझाए, जिससे फिल्म की रिलीज़ में देरी हुई। दूसरी ओर, फिल्म निर्माताओं का दावा है कि फिल्म ऐतिहासिक रूप से सटीक है, इसमें फुले दंपत्ति के कार्य को समर्थन देने वाले ब्राह्मण पात्र भी हैं, और किसी भी समुदाय को बदनाम करने का उद्देश्य नहीं है। फिर भी, सीबीएफसी ने ब्राह्मण संगठनों की शिकायतों को प्राथमिकता दी, निर्माताओं की ऐतिहासिक सटीकता की दावों की अनदेखी करते हुए जाति संबंधित शब्दों या प्रसंगों को बदलने पर जोर दिया। इससे सीबीएफसी की निष्पक्षता संदिग्ध हो जाती है, क्योंकि यह एक विशिष्ट समूह की भावनाओं को अधिक महत्व देता प्रतीत होता है और निर्माताओं की कलात्मक दृष्टि की अनदेखी करता है। परिणामस्वरूप, यह प्रश्न उठता है कि क्या सीबीएफसी स्वतंत्र रूप से निर्णय ले रहा है या संगठनों के दबाव में काम कर रहा है। यदि सीबीएफसी दबाव में आकर ऐतिहासिक सत्य या कलात्मक दृष्टिकोण बदलने के लिए मजबूर हो रहा है, तो फिल्म निर्माताओं का मूल संदेश कमजोर होता है और दर्शकों के अधिकार पर असर पड़ता है। इसलिए, सीबीएफसी की कार्यप्रणाली और विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाना स्वाभाविक और आवश्यक है।
Bollywood News चौथा मुद्दा कलात्मक स्वतंत्रता का है। फुले के उद्देश्य का मूल तत्व शोषण आधारित सुधार था, इसलिए उस समय उन्हें बड़ा विरोध और कठोर सामाजिक संघर्ष झेलना पड़ा। इन संपादनों से फिल्म की ऐतिहासिक सटीकता प्रभावित होगी। इससे निर्माताओं की कलात्मक दृष्टि और दर्शकों के अप्रतिबंधित सूचना अधिकार के साथ अन्याय होगा। यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित सामाजिक भयावहता की कलात्मक अभिव्यक्ति और वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में संघर्ष को प्रतिबिंबित करता है।
Bollywood News चाहे फिल्म को अनुमति मिले या विरोध, एक बात निश्चित है—यह फिल्म हमारे सामाजिक इतिहास का आईना बनकर ज्वलंत वास्तविकता सामने ला रही है। इसमें शिक्षा के लिए संघर्ष करती महिला, जाति की दीवारें तोड़ने वाला शिक्षक, ब्राह्मणवादी वर्चस्व पर आधारित हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था, सामाजिक बहिष्कार, धार्मिक आतंक; महात्मा फुले का जीवन—ये सभी शामिल हैं।
Bollywood News महात्मा फुले का कार्य उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के योगदान के बिना पूरा नहीं हो सकता था। महात्मा फुले ने एक अशिक्षित कम उम्र की अपनी विवाहिता पत्नी सावित्री को पढ़ाया लिखाया और समाज में पहली महिला शिक्षिका के रूप में स्थापित किया। इस महिला ने सामाजिक बहिष्कार का सामना करते हुए शिक्षा का दीपक जलाए रखा। फुले ने जातिवादी वर्चस्ववाद पर आधारित शिक्षा व्यवस्था की दीवारें ढहा दीं। उन्होंने अस्पृश्य, दलित और शूद्र बच्चों के लिए अलग स्कूल खोले। उनकी स्कूलों में जाति नहीं पूछी जाती थी, जो उस समय क्रांतिकारी था। फुले ने ‘गुलामगिरी’ जैसे ग्रंथ में जातिगत व्यवस्था का पर्दाफाश किया और ब्राह्मणवादी वर्चस्ववाद पर सीधा प्रहार किया। उन्होंने कहा, “जब तक समाज शिक्षित नहीं होगा, वह गुलाम ही रहेगा।”
Bollywood News महात्मा फुले द्वारा आरंभ किया गया सामाजिक आंदोलन सत्ता समर्थित वर्णव्यवस्था के खिलाफ थी। इससे उन्हें समाज से व्यापक विरोध सहन करना पड़ा। समाज ने उन्हें बहिष्कृत किया। सावित्रीबाई के अपमान और फेंकी गंदगी से वे नहीं डिगीं। धार्मिक आतंक का स्वरूप भी उन्होंने सहन किया। उन्होंने ईश्वर, धर्म और पूजा पद्धतियों पर प्रश्न उठाए। “ईश्वर ने इंसान को नहीं बनाया बल्कि ईश्वर खुद मनुष्य कि निर्मिती है” उन्होंने स्पष्ट कहा। इन विचारों के कारण उन्हें ‘नास्तिक’ और ‘धर्मद्रोही’ कहा गया, फिर भी वे दोनों अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए।
Bollywood News महात्मा फुले का कार्य केवल शिक्षा तक सीमित नहीं था। उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना करके सामाजिक समानता का नया मार्ग खोला। विधवाओं का पुनर्विवाह, महिलाओं के गर्भपात अधिकार, लड़कियों की शिक्षा की आवश्यकता, कृषि शोषण और ब्राह्मण-पूजक वर्ग का वर्चस्व—इन सभी मुद्दों पर उन्होंने लेखन और कार्य किए। उन्होंने संघर्ष नहीं रोका और सत्यशोधक समाज की नींव रखी, जिसका मुख्य उद्देश्य जातिगत समानता स्थापित करना और ब्राह्मणवादी वर्चस्व का विरोध करना था।
Bollywood News सत्यशोधक समाज ने विवाह, नामकरण, अंत्यसंस्कार जैसे धार्मिक अनुष्ठानों को ब्राह्मणों के बिना संपन्न करना शुरू किया। जातिगत भेदभाव को त्यागकर एक साथ भोजन और सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करने की परंपरा चलाई। सभी जातियों के लोगों ने मिलकर ‘सत्यशोधक’ के रूप में अपनी पहचान बनाई। सत्यशोधक समाज ने पहली बार दलित, शूद्र, महिलाएं—इन सभी को ‘अपना’ महसूस कराने वाला सामाजिक मंच प्रदान किया। समाज में शिक्षा के समान अधिकारों का आंदोलन हुआ।
Bollywood News महात्मा फुले के बढ़ते उम्र, खराब होते स्वास्थ्य के बाद भी समाज के लिए कार्य करने की उनकी ऊर्जा कम नहीं हुई। उनकी मृत्यु के बाद भी सत्यशोधक समाज आंदोलन जारी रहा। बाद में शाहू महाराज, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, पेरियार जैसे नेताओं ने सत्यशोधक विचारधारा से प्रेरणा ली। आज भी जातिगत भेदभाव के आधार पर लोगों की हत्या होती है, देव-धर्म के नाम पर अंधविश्वास कि घटनाएं घटित होती हैं। आदिवासी, महिलाओं, दलितों, ओबीसी के अधिकारों पर प्रहार होता है।
Bollywood News निर्देशक अनंत महादेवन ने फिल्म का बचाव करते हुए स्पष्ट कहा है, “मेरी फिल्म का कोई एजेंडा नहीं है। यह भारतीय समाज के चेहरामोहरे बदलने वाले समाज सुधारकों को सच्ची सिनेमाई श्रद्धांजली है।” उनके अनुसार, फिल्म का उद्देश्य भड़काना नहीं, बल्कि शिक्षित करना और प्रेरित करना है। फुलेवाद केवल एक फिल्म तक सीमित नहीं; यह भारत में जातिगत चर्चाओं के आसपास उभरी अस्वस्थता है। फुले का कार्य शैक्षणिक रूप से मनाया जाता है, फिर भी मीडिया में उनके सामाजिक परिवर्तनकारी विचारों को चित्रित करने के प्रयासों को अब भी रोका जा रहा है।
Bollywood News जातिगत विषमता को चुनौती देकर दलित–पीड़ित समुदायों को सशक्त करने के लिए फुले दंपत्ति ने अनवरत संघर्ष किया। महात्मा फुले द्वारा आरंभ की गई विचारधारा का संघर्ष आज भी हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षा, समानता और न्याय की दिशा में हर कदम पर महात्मा फुले की प्रेरणादायी विरासत दिखाई देती है। महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले द्वारा प्रदर्शित ‘सत्यशोधक’ मार्ग आज भी अनेक विचारों को दिशा देता है।