Mahakumbh 2025 : महाकुंभ में लाखों की संख्या में कहां से आते है नागा साधु? मेले के समापन के बाद कहां हो जाते है गायब? जानें रोचक बातें…
Mahakumbh 2025 : महाकुंभ में लाखों की संख्या में कहां से आते है नागा साधु? मेले के समापन के बाद कहां हो जाते है गायब? जानें रोचक बातें...

नई दिल्ली। Mahakumbh 2025 : महाकुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में चार प्रमुख शहरों – इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इस मेले में लाखों लोग पवित्र गंगा, यमुना, और अन्य नदियों में स्नान करने के लिए आते हैं।

महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, साधना और तपस्विता का प्रतीक है। नागा साधु इस आयोजन के अभिन्न हिस्सा होते हैं। महाकुंभ में विशेष रूप से नागा साधु अपने अद्भुत रूप और ध्यानाकर्षक जीवनशैली के कारण सुर्खियों में रहते हैं।
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Mahakumbh 2025 : नागा साधु कौन होते हैं?
नागा साधु वो संत होते हैं जो पूरी तरह से संन्यास लेने के बाद खुद को समाज से अलग कर लेते हैं। ये साधु पूरी तरह से नग्न रहते हैं और अपने शरीर पर भस्म या चंदन का लेप लगाते हैं। नागा साधु खुद को किसी भी भौतिक बंधन से मुक्त मानते हैं और एक तपस्वी जीवन जीते हैं। वे ध्यान और साधना में मग्न रहते हैं, और अपनी आध्यात्मिकता को सर्वोच्च मानते हैं।
महाकुंभ के समय नागा साधु विशेष आकर्षण का केंद्र बनते हैं। यह माना जाता है कि वे विशेष रूप से पवित्र होते हैं और उनकी साधना के कारण उनके आशीर्वाद से भक्तों के पाप धुल जाते हैं। वे कुम्भ में पहले स्नान करते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। नागा साधु के बिना महाकुंभ का मेला अधूरा माना जाता है, क्योंकि वे इस आयोजन को आध्यात्मिक दृष्टि से शुद्ध करते हैं।
Mahakumbh 2025 : नागा साधु कहाँ से आते हैं और कुम्भ के बाद कहाँ जाते हैं?
नागा साधु आमतौर पर हिमालयी क्षेत्रों या मध्य भारत के विभिन्न हिस्सों से आते हैं। इन साधुओं का एक विशेष समूह होता है, जिन्हें अखाड़ा कहा जाता है। ये साधु कुम्भ के समय एकत्र होते हैं और उनके समूह विशेष रूप से एक या अधिक अखाड़ों में होते हैं। इन अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य अपने अनुयायियों को धर्म, साधना और शिष्य परंपरा से जोड़ना है।

Mahakumbh 2025 : कुम्भ के बाद, जब मेला समाप्त हो जाता है, तो ये साधु फिर से अपने आश्रमों या साधना स्थलों की ओर लौट जाते हैं। वे अक्सर दूरदराज के क्षेत्रों में चले जाते हैं, जहाँ वे ध्यान और तपस्या करते हैं। कुछ साधु एक स्थान पर स्थिर हो जाते हैं, जबकि अन्य अपनी साधना के लिए निरंतर यात्रा करते रहते हैं।