Srimad Bhagwat : श्रीमद् भागवत एक जीवन बनाने वाला ग्रंथ है, न कि केवल जीविका चलाने का: पं. अखिलेश
Srimad Bhagwat : श्रीमद् भागवत एक जीवन बनाने वाला ग्रंथ है, न कि केवल जीविका चलाने का: पं. अखिलेश

रायपुर | Srimad Bhagwat : रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम, रायपुर के तत्वावधान में विवेकानन्द जयन्ती के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन ‘रास पंचध्यायी’ पर प्रवचन देते हुए वृन्दावन से पधारे पं. अखिलेश शास्त्री जी ने कहा कि श्रीमद् भागवत एक जीवन बनाने वाला ग्रंथ है, न कि केवल जीविका चलाने का। Srimad Bhagwat भगवान की लीला हृदय को शुद्ध करने का कार्य करती है। श्री वृन्दावन की रासलीला भगवान श्री कृष्ण की घर की लीला है। यह लीला नित्य नूतन होती रहती है, और इसके कई प्रमाण मिलते हैं। Srimad Bhagwat
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रासलीला सभी साधनों का फल है और यह वही दिव्य रस है, जो हमें जीवन में ऊर्जा प्रदान करता है। ‘रसो वै रसः’ अर्थात् भगवान का रस हमें जीवित रखता है। इस दिव्य रस के मिलने पर लौकिक रस अपने आप छूट जाता है। जब साधक भक्त इस दिव्य रस में निमग्न होता है, तो विषय-रस कब और कहाँ छूट जाते हैं, यह उसे समझ में ही नहीं आता। भगवद् रस तभी मिलेगा, जब संसार का रस फीका पड़ जाएगा। Srimad Bhagwat
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गोपियों से हमें एडजस्टमेंट और अटैचमेंट की शिक्षा मिलती है। गोपियाँ अपने परिवार में एडजस्टमेंट करती हैं, और भगवान से अटैचमेंट रखती हैं। भगवान से दिल लगाने से हमें उनका सान्निध्य मिलता है, जबकि दिमाग से केवल सांसारिक कार्य होते हैं। हमें संसार में दिमाग से काम करना चाहिए, लेकिन भगवान से दिल लगाकर। जब हम संसार से हारने लगें, तो भगवान की ओर ध्यान लगाएं, वे निश्चित रूप से हमारी रक्षा करेंगे, जैसे श्री कृष्ण ने भीम की जरासंध से युद्ध करते समय उनकी रक्षा की थी। Srimad Bhagwat
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रासलीला परम प्रेममयी रसलीला है, जो हृदय के प्रेम को प्रकट करने वाली है। इसके अधिकारी केवल गोपियाँ हैं। जब गोपियाँ श्री कृष्ण के पास पहुंचीं, तो भगवान ने उनका स्वागत किया और पूछा, “कहो, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?” गोपियाँ चुप हो गईं, और जब भगवान ने उन्हें अपने घर जाने को कहा, तो गोपियों ने कहा कि जो संसार को छोड़कर हम यहां आए हैं, हम अब वापस वहां नहीं जाएंगे। Srimad Bhagwat
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श्रवण, दर्शन और ध्यान के माध्यम से भगवान की लीला हमारे हृदय में प्रकट हो जाती है। भगवान जगत को नचाते हैं और भक्त भगवान को नचाता है। भगवान की भक्ति से शास्त्र हमारे हृदय में उत्पन्न होते हैं। भक्त का बल भगवान होते हैं। मीरा ने कहा है, “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई।” सूरदास जी कहते हैं, “निर्बल के बल राम।” Srimad Bhagwat